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Thursday, March 31, 2011

TearDown4

बातोँ से तेरी अब यही हर बार लगता है;
मेरा दिल भी दिल बहलाने का औज़ार लगता है;
लेकर कहाँ जाएँ हम अपनी मुफ़लिसी, तू ही बता;
जिसे हम घर समझते थे, तुझे बाज़ार लगता है.

Sunday, March 27, 2011

TearDown0

खुसी रहे न ये, ये ग़म भी न रहें;
ये सांस, ये नब्ज़, ये दम भी न रहें,
ऐ मेरे दोस्त मेरे साथ जरा आहिश्ता चल;
क्या पता की अगले मोड़ तक हम भी न रहें.